Tuesday, December 30, 2008

हँसी

मन- मस्तिष्क पर उग आये
अनेक विचार, व कामनायें
हृदय में पनप गये
अनेकों विचार, व कामनायें
जो जीवन पर्यन्त विकसित
ही होते गए और आशाओं का इन्द्रधनुष,
और आपस में उलझते गये
उनमें अचानक एक संधि सी हो गई ,
मन मस्तिष्क और हृदय ने
पहले बातें की, फिर हँस पड़े
और उनकी इस हँसी से
उनके गगन पर छाए
सारे बादल छँट गए,
अब उनका निश्चय है
कि हृदय पर या मन पर
कुछ भी उगने ना दो
जो उगता हए, वो बढ़ता है
फिर पनप कर पूरे में छा जाता है
छा कर अन्धकार व घुटन में बदल जाता है
बचपन में जो उगता था
भाग -दौड़ में, खेल - कूद में
सारा का सारा झड़ जाता था
युवावस्था में वैसी हलचल तो थी नहीं,
सो जमावड़ा बढ़ता गया
और मन और हृदय उसके तले दबता गया
आज अचानक उस हँसी ने अंधकार को काट दिया
और स्वयं बादल बन कर
नीले गगन में तैर गया
ये जीत थी मन की
ये जीत थी उस हृदय की
जो नहीं जानता था, उड़ना या तैरना !

1 comment:

  1. बचपन में जो उगता था
    भाग -दौड़ में, खेल - कूद में
    सारा का सारा झड़ जाता था

    बहुत सुन्दर विचार हैं भुवनेश्वरी जी!

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