Saturday, January 3, 2009

हवाएँ

ये हवाएँ सब कुछ उड़ा के ले जायेंगी
ये मकान तो हमेशा, ऐसा ना रह जायेगा,
कितने हवा-महल बने हैं आज तक,
कहाँ टिका है कोई उनमें आज तक ,
ये सर्द काली हवाएँ, ये शीतल बयार ,
ये गरमी से तपती लू ,ये बसंती बयार ,
ये अपने तरीकों से घरों में रहना , और
हवाओं के कारण बिखर जाना ,

हवाओं को कौन रोक पाया है अब तक ,
सब रिश्तों के बीच, गर्म सर्द हवाएँ हैं अभी तक

आओ आने वाली हवाओं पे निसार हो जाओ ,
जो चले गए यहाँ से ,वो कुर्बान इन हवाओं पर ,

कब से बह रहीं हैं , इनके वेग को ना कोई जाना ,
कहाँ से आती जाती हैं, इनके हाल को न कोई जाना ,

ये हवाएँ सब कुछ उड़ा के ले जायेंगी ,
ना ज़मीन की , ना आसमान की हो पायेंगी
ये थीं किसकी जो तुम्हारी कहलायेंगी।

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