ये हम ही थे` हमारे पास
जब भी हम रोए , किसी दुसरे के कंधे की उम्मीद की ,
पर अपने उपर ही रोए
थे हम ही हमारे साथ
सुबह शाम पूजा करने लगे ,
सच भी तो था ,केवल हम ही थे हमारे पास ,
मन के दुसरे भाग ने ,
जितनी ज्यादा साथ की चाह की ,
उतने अकेले होते चले गये ,
उतने अकेले की कभी -कभी ,
अपना पास भी छूट गया ,
अपने आप में इतना उलझे की ,
कुछ दूसरा काम ही नही
अपने लिए कुछ ना किया , तो पाते कहा से ,
अब एक चीज की चाह है
हम होऊ हमारे जुड़े हाथ हो`ओ और तुम्हारे चरण हो
हम हों हमारे साथ औरहो इसी चाह के साथ
जो आस तुमसे जोड़ी है , देखो तोड़ न देना ,
जब अंत होगा , तब ह म होगे हमारे साथ
जलेगे -बरेगे तो हमी होगे हमारे साथ ,
जब आए थे तो कौन था हमारे साथ ,
हमही थे अपने रोने -हसने को ,
सिर्फ़ हमही थे हर बार अपने साथ
इती
Sunday, January 4, 2009
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स्वागत भुवनेश्वरी जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteमेरे मित्र
ReplyDeleteअभिवंदन
आप द्वारा लिखित बातो ने मेरे दिल को छु लिया। अति सुन्दर॥॥॥।
मेरे ब्लोग को देखे।
jai ho magalmay ho
kafi achcha likha hai.
ReplyDeletekabhi yaha bhi aaye...
http://jabhi.blogspot.com
आपका स्वागत। लिखना जारी रहे।
ReplyDeletebahut sunder Bhuvneshwari ji..
ReplyDeletesach hi hai..hum hi hai humare paas...
badhai!!
shailja
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteDhanyawad sabhi mitro ko
ReplyDeleteMaffi chahti hun der se jawab dene ka
abb se koshish hai samay par apke vichar lene ki aur kuch likhne ki!