Sunday, January 4, 2009

हम ही थे हमारे साथ

ये हम ही थे` हमारे पास
जब भी हम रोए , किसी दुसरे के कंधे की उम्मीद की ,
पर अपने उपर ही रोए
थे हम ही हमारे साथ
सुबह शाम पूजा करने लगे ,
सच भी तो था ,केवल हम ही थे हमारे पास ,
मन के दुसरे भाग ने ,
जितनी ज्यादा साथ की चाह की ,
उतने अकेले होते चले गये ,
उतने अकेले की कभी -कभी ,
अपना पास भी छूट गया ,
अपने आप में इतना उलझे की ,
कुछ दूसरा काम ही नही
अपने लिए कुछ ना किया , तो पाते कहा से ,
अब एक चीज की चाह है
हम होऊ हमारे जुड़े हाथ हो`ओ और तुम्हारे चरण हो
हम हों हमारे साथ औरहो इसी चाह के साथ
जो आस तुमसे जोड़ी है , देखो तोड़ न देना ,
जब अंत होगा , तब ह म होगे हमारे साथ
जलेगे -बरेगे तो हमी होगे हमारे साथ ,
जब आए थे तो कौन था हमारे साथ ,
हमही थे अपने रोने -हसने को ,
सिर्फ़ हमही थे हर बार अपने साथ

इती

8 comments:

  1. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  2. मेरे मित्र
    अभिवंदन
    आप द्वारा लिखित बातो ने मेरे दिल को छु लिया। अति सुन्दर॥॥॥।
    मेरे ब्लोग को देखे।
    jai ho magalmay ho

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  3. kafi achcha likha hai.
    kabhi yaha bhi aaye...
    http://jabhi.blogspot.com

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  4. आपका स्वागत। लिखना जारी रहे।

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  5. bahut sunder Bhuvneshwari ji..

    sach hi hai..hum hi hai humare paas...

    badhai!!



    shailja

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  6. रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. Dhanyawad sabhi mitro ko
    Maffi chahti hun der se jawab dene ka
    abb se koshish hai samay par apke vichar lene ki aur kuch likhne ki!

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